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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2799
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- व्यक्तित्व के जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।

अथवा
व्यक्तित्व के जैविक निर्धारकों का वर्णन करें।

उत्तर -

व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उपस्थित मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो उस व्यक्ति पर्यावरण के प्रति विशिष्ट समायोजन को निर्धारित करता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व अनेक कारकों से प्रभावित होता है।

(A) जैविक या अनुवांशिक कारक
(Biological or Hereditary Determinents)

व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव डालने वाले प्रमुख जैविक कारक निम्नलिखित हैं

(i) शारीरिक गठन (Physique) - शेल्डन (1940) के अनुसार, “शारीरिक संरचना व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।' यदि बालक का शारीरिक गठन उत्तम अर्थात् सुगठित है तो उसका व्यक्तित्व भी सुगठित होता है। इसके विपरीत निम्न कोटि की शारीरिक संरचना बालक में हीनभावना उत्पन्न करती है और उसके व्यक्तित्व को विघटित कर देती है।

(ii) बुद्धि (Intelligence) - व्यक्तित्व के विकास में बुद्धि का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि बुद्धि समायोजन, उपलब्धि तथा सर्जनशीलता जैसे सभी उपयोगी व्यवहारों का निर्धारण करती है। यदि बालक की बुद्धि प्रखर है तो उसे अध्यापकों एवं मित्रों आदि का प्रोत्साहन मिलता है जिसके फलस्वरूप उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। इसके विपरीत मन्द बुद्धि बालक प्रोत्साहन के अभाव में अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता है। यदि बालक के बौद्धिक स्तर का मापन करके उसकी मानसिक योग्यता के अनुरूप प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाय तो बालकों के व्यक्तित्व को काफी सीमा तक संतोषजनक बनाया जा सकता है।

(iii) आकर्षणता (Attractiveness) - जो बालक दूसरों को आकर्षित करने वाले तथा सुन्दर होते हैं उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है तथा अनाकर्षक बालकों में हीनभावना तथा ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है जो अंततः उनके व्यक्तित्व के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

(iv) शारीरिक दशाएँ (Physical Conditions) - शारीरिक दशायें भी व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रायः स्वस्थ एवं दोषमुक्त बालक के प्रति परिवार वालों का दृष्टिकोण अनुकूल तथा अस्वस्थ तथा दोषयुक्त बालकों के प्रति प्रतिकूल होता है जिसके कारण ऐसे बच्चों में हीनभावना विकसित हो जाती है जो उनके व्यक्तित्व के विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देती है।

(v) यौन की भूमिका (Role of Sex) - लैंगिक भिन्नता के कारण समाज में बालक व बालिकाओं की भूमिका अलग-अलग निर्धारित होती है। भूमिकाओं एवं जैविक संरचना में अन्तर होने के कारण उनके व्यवहार में भी अन्तर आता है जो उनके व्यक्तित्व की संरचना एवं विकास को प्रभावित करता है।

(vi) जन्म क्रम (Birth Order) - व्यक्तित्व के विकास में जन्मक्रम का अपना अलग महत्व है। हरलाक (1975) के अनुसार, प्रथम संतान में परिपक्वता शीघ्र आती है, समायोजन अच्छा होता है परन्तु उसमें असुरक्षा की भावना अधिक होती है। इसके विपरीत बाद की सन्तानों में स्वतन्त्रता की भावना अधिक और उत्तरदायित्व की भावना कम होती है।

(vii) अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का प्रभाव (Effect of Endocrine Glands) - व्यक्तित्व तथा व्यवहार के विकास पर अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का भी प्रभाव पड़ता है। ये ग्रन्थियाँ नलिकाविहीन होती हैं तथा अपने रस द्रवों (Hormones) को रक्त में प्रवाहित करती हैं। यदि किसी ग्रंथि से रसस्राव असन्तुलित होता है तो उसका व्यक्तित्व के विकास पर अवरोधक प्रभाव पड़ता है।

 

(B) सामाजिक निर्धारक
(Social Determinents)

व्यक्तित्व के सामाजिक निर्धारक या कारक निम्नलिखित हैं-

(i) प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव (Early Social Experiences) - व्यक्तित्व के विकास में प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव विशेष प्रभाव डालते हैं। प्रारम्भिक अनुभव जीवन की आधारशिला होते हैं। बालक को जीवन के आरम्भिक वर्षों में जो भी अनुभव होते हैं वे उसके व्यक्तित्व को एक विशेष दिशा में ढाल देते हैं जो उसके पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।

(ii) सामाजिक वंचन (Social Deprivation) - यदि बालक को सामाजिक अन्तः क्रिया या सामाजिक अधिगम से वंचित कर दिया जाता है तो उसमें किसी भी शीलगुण का विकास नहीं होगा। भौगोलिक एकाकीपन एवं पारिवारिक नियन्त्रणों के कारण अक्सर बालकों को सामाजिक अनुभवों का लाभ नहीं मिल पाता है जिसके कारण उन्हें अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध स्थापित करने में अधिक कठिनाई होती है।

(iii) सामाजिक स्वीकृति (Social Acceptance) - व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक स्वीकृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। बालक अपने से बड़ों तथा साथियों की स्वीकृति एवं अनुमोदन प्रात करने की इच्छा रखते हैं। इनकी यह इच्छा उन्हें अच्छे गुणों का विकास करने के लिए प्रेरित करती है।

(iv) प्रस्थिति प्रतीक (Status Symbol) - बालक के स्व तथा उसके व्यक्तित्व पर प्रस्थिति से सम्बन्धित प्रतीकों का भी प्रभाव पड़ता है। प्रायः यह देखा गया है कि जो बालक स्वच्छ तथा अच्छे वस्त्र धारण करते हैं उनके विषय अनुकूल या धनात्मक धारणा शीघ्र बन जाती है तथा उनके आर्थिक सामाजिक स्तर का पता चल जाता है। जिन बालकों को वस्त्र तथा अन्य सामग्रियाँ सरलता से मिल जाती हैं उनमें स्व का विकास अच्छी तरह से होता है।

(v) परिवार का प्रभाव (Influence of Family) - बालक के विकास में उसके परिवार की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। छोटे बच्चे परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के साथ तादात्मीकरण एवं अनुकरण करके अपना अलग अस्तित्व बनाने का प्रयास करते हैं। परिवार में रह कर बालक विभिन्न प्रकार के अनुभवों एवं प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं जो उनके व्यक्तित्व के प्रतिमानों को निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

(vi) समूह का प्रभाव ( Influence of Group) - व्यक्तित्व के विकास में समूहों का विशेष योगदान होता है। प्रत्येक व्यक्ति एक या एक से अधिक सामाजिक समूहों का सदस्य होता है। सामाजिक समूहों से तात्पर्य मनुष्यों के ऐसे निश्चित संग्रह से है जिसमें व्यक्ति उन परस्पर अंतरसम्बन्धी (Interrelated) कार्य को करते हैं जो अपने द्वारा या दूसरे के द्वारा अन्तः क्रिया की इकाई के रूप में मान्य होते हैं। प्रत्येक समूह की एक निश्चित विचारधारा होती है जिसका समूह के सदस्यों के व्यवहार पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।

(vii) सामाजिक सफलता (Social Success) - बालक स्वयं को सामाजिक रूप से सफल मानता है या असफल, इसका प्रभाव उसके आत्म पर पड़ता है तथा उसका व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन प्रभावित होता है। सफलता की दशा में आत्म के बारे में अनुकूल धारणा बनती है जबकि असफलता की दशा में ऐसे व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं जो उसके समायोजन को विघटित कर देते हैं।

(viii) विद्यालय का प्रभाव ( Influence of School) - सामाजिक व्यवस्था में विद्यालयों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जिन विद्यालयों में बच्चे प्रारम्भिक शिक्षा पाते हैं, उनके आदर्शों तथा क्रिया-कलापों का बालकों के व्यवहार तथा व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विद्यालय में पठन पाठन व्यवस्था, सामान्य वातावरण, मनोरंजन के साधन एवं शिक्षकों की क्षमता तथा उनके व्यक्तित्व के गुणों का प्रभाव विद्यार्थियों पर स्पष्ट रूप से पड़ता है।

(C) व्यक्तित्व के सांस्कृतिक निर्धारक
(Cultural Determinents of Personality)

व्यक्तित्व के निर्धारण में संस्कृति की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। प्रत्येक समाज की अपनी-अपनी सांस्कृतिक मान्यतायें, विश्वास तथा रीति-रिवाज होते हैं जिनका व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व के विकास में संस्कृति का प्रभाव निम्नलिखित रूप में पड़ता है -

(i) सामाजिक मानक (Social Norms) - प्रत्येक समाज में व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को नियन्त्रित तथा निर्देशित करने वाले कुछ मानक प्रचलन में होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति से ऐसे सामाजिक मानकों के अनुरूप कार्य करने की प्रत्याशा की जाती है। उनका उल्लंघन करने वाला व्यक्ति सामाजिक परिहास, निन्दा या दण्ड का भागी बनता है। ये सामाजिक मानक व्यवहार सम्बन्धी सामाजिक नियमों के रूप में होते हैं तथा व्यवहार का नियमन करते हैं।

(ii) सामाजिक भूमिकायें (Social Roles) - प्रत्येक समाज में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका निश्चित होती है। व्यक्ति को अपनी भूमिका के अनुरूप ही व्यवहार करना होता है। ऐसा न करने पर उसे सामाजिक अवमानना का पात्र बनना पड़ता है। व्यक्ति जिस प्रकार की भूमिका का निर्वाह करता है या उससे जिस प्रकार की भूमिका के निर्वाह की प्रत्याशा की जाती है, उसके व्यक्तित्व में उसी भूमिका से सम्बन्धित गुणों का विकास होता है तथा उसके आचार-व्यवहार, तथा व्यक्तित्व पर भूमिका का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।

(iii) पालन-पोषण विधियाँ (Child Cearing Methods) - व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके पालन-पोषण में प्रयुक्त विधि का भी प्रभाव पड़ता है। बच्चों को कठोर अनुशासन में रखने तथा स्नेह का अभाव होने से उनमें समायोजन के गुणों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। इसी प्रकार अधिक रूढ़िवादी तथा धर्मभीरु परिवार के बच्चों में अन्धविश्वास, चिन्ता, भय एवं असुरक्षा की भावना जैसी कुप्रवृत्तियाँ भी विकसित हो जाती हैं जिनका व्यक्तित्व के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रगतिशील परिवारों के बच्चों में उपलब्धि की आवश्यकता (Need of achivement) अधिक पायी जाती है। अनेक अध्ययनों में पाया गया है कि माता-पिता के सम्पर्क में कम रहने वाले बच्चों में आत्म- नियन्त्रण का प्रायः अभाव होता हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि बचपन में पालन-पोषण की विधियाँ तथा पारिवारिक परिवेश ही व्यक्तित्व के शीलगुणों की आधारशिला होते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिस प्रकार जीव का शुभारम्भ माता के गर्भाशय से होता है उसी प्रकार व्यक्तित्व का विकास पारिवारिक सम्बन्धों के गर्भाशय से ही प्रारम्भ होता है।

(iv) स्वावलम्बन बनाम पराश्रितता (Independence Vs. Dependence ) - व्यक्ति के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश का उसमें विकसित होने वाले स्वावलम्बन एवं परिनिर्भरता की भावना का प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ विघटित परिवारों में पले बच्चों में असुरक्षा की भावना अधिक पायी जाती है। इससे उनमें पराश्रितता एवं हीनता की ग्रन्थि विकसित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार कठोर अनुशासन में पले बच्चों में स्वावलम्बन की प्रवृत्ति कम विकसित हो पाती है और वे सामान्य कार्यों के लिये निर्देश या सुझाव की आवश्यकता अनुभव करते हैं।

(v) धार्मिक पृष्ठभूमि (Religious Background) - बालक का धार्मिक परिवेश उसके व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अध्ययन के अनुसार मुस्लिम किशोर हिन्दू किशोरों की तुलना में कम बर्हिमुखी होते हैं जबकि मुस्लिम किशोरों में मनोविकृति, मनस्ताप तथा मिथ्यावादिता हिन्दू किशोरों की तुलना में अधिक पायी जाती है। धार्मिक संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों में गैर-धार्मिक संस्थाओं के छात्रों की तुलना में उपर्युक्त प्रवृत्तियाँ अधिक प्रबल रूप में पायी गयीं। कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि साम्प्रदायिक संस्थाओं तथा गैर-सम्प्रदायिक संस्थाओं के छात्रों के व्यक्तित्व में असमानता होती है। सम्प्रदायिक संस्थाओं के छात्रों में रूढ़िवादिता, पूर्वाग्रह एवं असुरक्षा की भावना अधिक पायी जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा में मापन के अर्थ एवं विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- मापन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- शैक्षिक मापन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- मापन की उपयोगिता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन की अवधारणा एवं अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसकी उपयोगिता भी स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए !
  7. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
  8. प्रश्न- मापन और मूल्यांकन में सम्बन्ध बताइए।
  9. प्रश्न- मापन एवं मूल्याँकन में क्या अन्तर है? शिक्षा में इनकी क्या आवश्यकता है?
  10. प्रश्न- शिक्षा में मूल्यांकन के उद्देश्य और कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- सतत् और व्यापक मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- आकलन क्या है तथा आकलन क्यों किया जाता है? विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर परिभाषित कीजिए।
  13. प्रश्न- आकलन के क्षेत्र उनकी आवश्यकता तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आकलन की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  14. प्रश्न- शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आकलन के प्रकार तथा इसकी विशेषताएँ एवं उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
  15. प्रश्न- आकलन के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- आकलन प्रक्रिया के सोपान कौन-कौन से हैं?
  17. प्रश्न- भौतिक तथा मानसिक मापन क्या होता है? इनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  18. प्रश्न- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्यों तथा उसके स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- अच्छे मापन की विशेषतायें बताइये।
  20. प्रश्न- मापन कितने प्रकार का होता है?
  21. प्रश्न- शैक्षिक मापन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- मापन के प्रमुख कार्य बताइये।
  23. प्रश्न- मापन एवं मूल्यांकन के विशिष्ट उद्देश्य बताइए।
  24. प्रश्न- सतत् तथा व्यापक मूल्यांकन का क्या महत्त्व है? वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- परीक्षण मानक को विस्तार से समझाइये।
  27. प्रश्न- मानक से आप क्या समझते हैं? ये कितने प्रकार के होते है? अच्छे मानकों की विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- मानक कितने प्रकार के होते हैं?
  29. प्रश्न- अच्छे मानकों की विशेषताएँ बताइए।
  30. प्रश्न- अंकन तथा ग्रेडिंग प्रणाली का अर्थ बताते हुए दोनों के बीच क्या अन्तर है? व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रचलित क्रेडिट सिस्टम क्या है? इसके लाभ और हानि पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- मानक परीक्षण 'मानक' क्या होते हैं?
  33. प्रश्न- मानक क्या है? मानकों के प्रकार बताइये।
  34. प्रश्न- उपलब्धि परीक्षण से क्या आशय है? इसके उद्देश्य एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- उपलब्धि परीक्षणों के उद्देश्य बताइये।
  36. प्रश्न- उपलब्धि परीक्षणों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- प्रमापीकृत परीक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं को बताइये।
  38. प्रश्न- प्रमापीकृत परीक्षण की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  39. प्रश्न- एक अच्छे परीक्षण से आप क्या समझते हैं? एक अच्छे परीक्षण की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- एक अच्छे परीक्षण की विशेषतायें बताइये।
  41. प्रश्न- परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परीक्षण की प्रकृति के आधार पर परीक्षणों के प्रकार लिखिए।
  43. प्रश्न- परीक्षण के द्वारा मापे जा रहे गुणों के आधार पर परीक्षणों के प्रकार लिखिए।
  44. प्रश्न- परीक्षण के प्रशासन के आधार पर परीक्षणों के विभिन्न प्रकारों को बताइये।
  45. प्रश्न- परीक्षणों में प्रयुक्त प्रश्नों के आधार पर परीक्षणों के विभिन्न प्रकार लिखिए।
  46. प्रश्न- प्रश्नों के उत्तर के फलांकन के आधार पर परीक्षणों का वर्गीकरण, कीजिए।
  47. प्रश्न- परीक्षण में लगने वाले समय के आधार पर परीक्षणों के प्रकार लिखिए।
  48. प्रश्न- "निबन्धात्मक परीक्षण की कमियों को दूर करने के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षण की आवश्यकता है।" इस कथन के सन्दर्भ में वस्तुनिष्ठ परीक्षण की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- निबन्धात्मक परीक्षाओं के गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इसके उद्देश्य, गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  52. प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षण के उद्देश्य बताइए।
  53. प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षण के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- परीक्षणों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- मापीकृत उपलब्धि परीक्षण और अध्यापककृत उपलब्धि परीक्षणों में अन्तर बताइये।
  57. प्रश्न- बुद्धि के प्रत्यय / अवधारणा को बताते हुए उसके अर्थ एवं परिभाषा तथा बुद्धि की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  61. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  62. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- व्यक्तिगत एवं सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? व्यक्तिगत तथा सामूहिक बुद्धि परीक्षण की विशेषताएँ एवं सीमाएँ बताइये।
  64. प्रश्न- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण की विशेषताएँ बताइये।
  65. प्रश्न- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण की सीमायें बताइये।
  66. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
  67. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण की विशेषताएँ बताइए।
  68. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण की सीमाएँ बताइए।
  69. प्रश्न- संवेगात्मक बुद्धि से आप क्या समझते हैं? संवेगात्मक लब्धि के विचार पर टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  71. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  72. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  73. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  76. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  77. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  78. प्रश्न- शाब्दिक एवं अशाब्दिक बुद्धि परीक्षणों के अंतर को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? उनका निर्धारण कैसे होता है? व्यक्तित्व की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व के जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  82. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  83. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।-
  85. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  86. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  87. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  88. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- व्यक्तित्व सूचियाँ क्या होती हैं तथा इसके ऐतिहासिक विकास क्रम के बारे में समझाइए?
  92. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  93. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  95. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' ( OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  96. प्रश्न- प्रक्षेपी प्रविधियों के प्रकार तथा गुण-दोष बताइए।
  97. प्रश्न- प्रक्षेपी प्रविधियों के गुण बताइए।
  98. प्रश्न- प्रक्षेपी प्रविधियों के दोष बताइए।
  99. प्रश्न- प्रक्षेपी विधियाँ किसे कहते हैं? इनका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- प्रक्षेपी विधियों की प्रकृति तथा विशेषताएँ बताइये।
  101. प्रश्न- अभिक्षमता क्या है? परिभाषा भी दीजिए तथा अभिक्षमता कितने प्रकार की होती है? अभिक्षमता की विशेषताएँ क्या हैं?
  102. प्रश्न- अभिक्षमता परीक्षण के मापन पर प्रकाश डालिए।

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